Uttarakhand

पाकिस्तान में थम नहीं रही शिया-सुन्नी के बीच हिंसा, 130 से ज्यादा की मौत

पाकिस्तान में थम नहीं रही शिया-सुन्नी के बीच हिंसा, 130 से ज्यादा की मौत

पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के कुर्रम जिले में शिया और सुन्नी के बीच हिंसा रोकने के सभी उपाय विफल साबित हो रहे हैं। रविवार को ग्यारहवें दिन जारी हिंसा में छह लोगों की मौत हो गई और आठ अन्य घायल हो गए।

कुर्रम जिले में एक वाहन पर 22 नवंबर को हुए हमले में 50 से ज्यादा लोगों के मारे जाने के बाद शुरू हुई  हिंसा में मरने वालों की संख्या 130 और घायलों की संख्या 186 हो चुकी है। वाहन पर हुए हमले में मारे गए लोगों में ज्यादातर शिया समुदाय के थे।पुलिस ने कहा कि शिया और सुन्नी के बीच हाल ही में संघर्ष विराम होने के बावजूद हिंसा नहीं थमी है।

इंटरनेट सेवा निलंबित,  हाईवे बंद

रुक-रुक कर हो रही हिंसा के कारण संघर्ष विराम निष्प्रभावी साबित हो गया। अफगानिस्तान से सटे कुर्रम जिले में भूमि और स्थानीय विवाद को लेकर शिया-सुन्नी के बीच दशकों से संघर्ष होता आ रहा है। अभी जारी हिंसा के कारण कुर्रम क्षेत्र संचार से कटा हुआ है। मोबाइल और इंटरनेट सेवा निलंबित है और शिक्षण संस्थान एवं हाईवे बंद हैं। हिंसा रोकने को पुलिस और अन्य सुरक्षा बल तैनात किए गए हैं।

ब्रिटेश की संसद में उठा मुद्दा

ब्रिटिश सांसदों ने पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की धार्मिक स्वतंत्रता, मानवाधिकार हनन और जबरन मतांतरण के बारे में चिंता जताई। ब्रिटिश सांसद जिम शैनन ने पाकिस्तानी सरकार द्वारा कार्रवाई की कमी की भी निंदा की। उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि पाकिस्तान में विधायी और सामाजिक ढांचे ने ऐसा माहौल बना दिया है, जहां असहिष्णुता पनपती है।

अल्पसंख्यकों की स्थिति खराब हुई

शैनन ने कहा कि पिछले पांच वर्षों में अल्पसंख्यकों की स्थिति खराब हुई है। उन्होंने हालात को गंभीर बताते हुए कहा कि ईसाई, हिंदू, अहमदी और शिया मुसलमानों को भेदभाव, हिंसा और उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि मैंने 2018 और 2023 में दो मौकों पर पाकिस्तान का दौरा किया। मुझे यह कहना अच्छा लगेगा कि इन पांच वर्षों में पाकिस्तान में चीजें बदली हैं। लेकिन अल्पसंख्यकों के हालात नहीं बदले हैं। वास्तव में वे बदतर हो गए हैं।

पाकिस्तान में पाठ्यपुस्तकें रूढ़िवादिता को बढ़ावा दे रही हैं, जिससे अगली पीढ़ी में असहिष्णुता को बढ़ावा मिल रहा है। अल्पसंख्यक छात्रों को इस्लामी सामग्री का अध्ययन करने के लिए मजबूर किया जाता है, जिससे वे पहले से ही पूर्वाग्रह से भरे समाज में अलग-थलग पड़ जाते हैं। आर्थिक भेदभाव उन चुनौतियों को और बढ़ा देता है।

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